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ई॒ळि॒तो अ॑ग्ने॒ मन॑सा नो॒ अर्ह॑न्दे॒वान्य॑क्षि॒ मानु॑षा॒त्पूर्वो॑ अ॒द्य। स आ व॑ह म॒रुतां॒ शर्धो॒ अच्यु॑त॒मिन्द्रं॑ नरो बर्हि॒षदं॑ यजध्वम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īḻito agne manasā no arhan devān yakṣi mānuṣāt pūrvo adya | sa ā vaha marutāṁ śardho acyutam indraṁ naro barhiṣadaṁ yajadhvam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒ळि॒तः। अ॒ग्ने॒। मन॑सा। नः॒। अर्ह॑न्। दे॒वान्। य॒क्षि॒। मानु॑षात्। पूर्वः॑। अ॒द्य। सः। आ। व॒ह॒। म॒रुता॑म्। शर्धः॑। अच्यु॑तम्। इन्द्र॑म्। न॒रः॒। ब॒र्हि॒ऽसद॑म्। य॒ज॒ध्व॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:3» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) बिजुली के समान प्रचण्ड प्रतापवाले विद्वान् जन ! (मानुषात्) और मनुष्य से (पूर्वः) प्रथम (नः) हम लोगों का (अर्हन्) सत्कार करते हुए (ईडितः) स्तुति को प्राप्त (मनसा) विज्ञान से (देवान्) दिव्य गुणों के समान विद्वानों का (यक्षि) सत्कार करते हैं। (सः) सो आप (मरुताम्) पवनों के (अच्युतम्) न नष्ट होनेवाले (इन्द्रम्) बिजुलीरूप (बर्हिषदम्) बड़े-बड़े पदार्थों में स्थिर होनेवाले (शर्द्धः) बल को (अद्य) आज (आवह) प्राप्त कीजिये। हे (नरः) अग्रगामी नायकजनो ! उसको आप लोग (यजध्वम्) प्राप्त हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों का सत्कार कर विद्या को ग्रहण कराती हुई पवनों में स्थिर होनेवाली बिजुली को ग्रहण कर सकते हैं, वे अक्षयबली होकर सर्वत्र सत्कार को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने मानुषात्पूर्वो नोऽस्मानर्हन्नीळितो मनसा देवान् यक्षि स त्वं मरुतामच्युतमिन्द्रं बर्हिषदं शर्द्धोऽद्यावह। हे नरः तं यूयं यजध्वम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईळितः) स्तुतः (अग्ने) विद्युदिव विद्वन् (मनसा) विज्ञानेन (नः) अस्मान् (अर्हन्) सत्कुर्वन् (देवान्) दिव्यगुणानिव विदुषः (यक्षि) यजसि (मानुषात्) मानवात् (पूर्वः) प्रथमः (अद्य) (सः) (आ) (वह) प्रापय (मरुताम्) वायूनाम् (शर्द्धः) बलम् (अच्युतम्) (इन्द्रम्) विद्युदाख्यम् (नरः) नायकाः (बर्हिषदम्) बृहत्सु पदार्थेषु सीदन्तम् (यजध्वम्) सङ्गच्छध्वम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये विदुषः सत्कृत्य विद्यां ग्राहयन्तीं वायुस्थां विद्युतं ग्रहीतुं शक्नुवन्ति, तेऽक्षयबला भूत्वा सर्वत्र सत्कृता भवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांचा सत्कार करून विद्या ग्रहण करतात व वायूमध्ये असलेल्या विद्युतचे ग्रहण करू शकतात ते अक्षय बलवान बनून सर्वत्र सत्कारास पात्र ठरतात. ॥ ३ ॥